बॉलीवुड में किसी किरदार का लुक सिर्फ कपड़े, हेयर या मेकअप तक सीमित नहीं होता। यही वह पहला विज़ुअल संकेत होता है, जिससे दर्शक किसी किरदार पर भरोसा करता है। यही वजह है कि जब खबर आई कि Akshaye Khanna ने अपनी आने वाली फिल्म में ‘रहमान डकैत’ का शुरुआती लुक पूरी तरह से रिजेक्ट कर दिया था, तो इंडस्ट्री में यह चर्चा का विषय बन गया। सवाल सिर्फ इतना नहीं था कि उन्होंने मना क्यों किया, बल्कि यह भी कि आखिर ऐसा क्या बदला, जिसने उन्हें उसी रोल के लिए हां कहने पर मजबूर कर दिया। अब इस पूरी क्रिएटिव जर्नी पर फिल्म के कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर ने खुलकर बात की है।
किरदार से समझौते के खिलाफ अक्षय खन्ना
अक्षय खन्ना उन गिने-चुने एक्टर्स में हैं जो किसी भी प्रोजेक्ट में जाने से पहले स्क्रिप्ट, किरदार की मानसिक बनावट और उसकी विज़ुअल प्रेज़ेंटेशन को बराबर महत्व देते हैं। ‘रहमान डकैत’ के केस में भी यही हुआ। शुरुआती लुक उन्हें जरूरत से ज्यादा स्टाइलिश और सतही लगा। उनका मानना था कि अगर लुक ही किरदार की सच्चाई नहीं दिखा पा रहा, तो परफॉर्मेंस भी कमजोर पड़ जाएगी। इसी सोच के चलते उन्होंने बिना हिचकिचाहट पहले ड्राफ्ट को खारिज कर दिया।
‘रहमान डकैत’ क्यों है आसान रोल नहीं
फिल्म से जुड़े लोगों के मुताबिक ‘रहमान डकैत’ कोई सीधा-सादा हीरो या विलेन नहीं है। यह ऐसा किरदार है, जो हालात, हिंसा और निजी संघर्षों के बीच जीता है। उसके फैसले सही या गलत की तय सीमा में नहीं बंधते। ऐसे ग्रे कैरेक्टर में दर्शक का भरोसा जीतने के लिए लुक का विश्वसनीय होना बेहद जरूरी था। अगर पहला फ्रेम ही बनावटी लगे, तो किरदार की पूरी परतें कमजोर पड़ सकती हैं।
पहले लुक में क्या थी सबसे बड़ी दिक्कत
कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर के अनुसार, शुरुआती डिजाइन में कई चीजें खटक रही थीं। कपड़े जरूरत से ज्यादा सिनेमैटिक थे, रंग बहुत साफ और नए दिख रहे थे, और चेहरे व बॉडी लैंग्वेज में वह खुरदरापन नहीं था, जो एक डकैत जैसे किरदार से जुड़ा होता है। अक्षय खन्ना ने साफ शब्दों में कहा था कि यह लुक किसी अपराधी की जिंदगी नहीं, बल्कि एक सजे-संवरे फिल्मी कैरेक्टर की तरह लग रहा है।
जब टीम ने बदली सोच और की ग्राउंड रिसर्च
लुक रिजेक्ट होने के बाद मेकर्स ने इसे ईगो इश्यू नहीं बनाया। पूरी टीम दोबारा रिसर्च में जुट गई। उत्तर भारत के बीहड़ इलाकों से जुड़े रेफरेंस खंगाले गए, पुराने केस रिकॉर्ड और तस्वीरें देखी गईं और यह समझने की कोशिश की गई कि ऐसे लोग असल जिंदगी में कैसे दिखते और चलते हैं। कपड़ों के फैब्रिक, उनकी सिलाई और समय के साथ हुए घिसाव तक पर बारीकी से काम किया गया।
वही बदलाव, जिसने तस्वीर पलट दी
री-डिज़ाइन के बाद लुक में साफ फर्क नजर आने लगा। रंग अब ज्यादा नेचुरल और धूल-मिट्टी से जुड़े थे। कपड़ों में जानबूझकर असमान घिसावट रखी गई। हेयर और बीर्ड को जरूरत से ज्यादा ग्रूम्ड रखने के बजाय रॉ टेक्सचर दिया गया। सबसे अहम बदलाव बॉडी पोस्टर में था, जहां थकान और सतर्कता दोनों का संतुलन दिखाया गया। डिजाइनर के मुताबिक, यह लुक कैमरे के लिए नहीं, किरदार की जिंदगी के लिए बनाया गया था।
अक्षय खन्ना को क्या पसंद आया
जब यह बदला हुआ लुक अक्षय खन्ना को दिखाया गया, तो उनकी प्रतिक्रिया पूरी तरह अलग थी। उन्हें महसूस हुआ कि अब कॉस्ट्यूम अभिनय में रुकावट नहीं, बल्कि मदद करेगा। यह लुक किरदार की अंदरूनी हिंसा और असुरक्षा को बिना डायलॉग के भी जाहिर कर रहा था। यही वह पल था, जहां एक सख्त ‘ना’ ने मजबूत ‘हां’ का रूप ले लिया।
इंडस्ट्री के लिए क्यों अहम है यह मामला
आज के दौर में कई फिल्मों में स्टार इमेज के हिसाब से लुक तैयार किए जाते हैं। ऐसे में यह उदाहरण बताता है कि किरदार-केंद्रित सोच अभी खत्म नहीं हुई है। बड़े कलाकार भी जानते हैं कि सही लुक के बिना दमदार परफॉर्मेंस मुमकिन नहीं। यह भी साफ होता है कि कॉस्ट्यूम डिज़ाइन अब सिर्फ फैशन नहीं, बल्कि कहानी कहने का अहम जरिया बन चुका है।
मेकर्स और क्रिएटिव टीम के लिए सबक
इस पूरे अनुभव से फिल्म इंडस्ट्री को साफ संदेश मिलता है। पहला ड्राफ्ट अंतिम नहीं होता, कलाकार की आपत्ति कई बार कहानी को बेहतर बनाती है और गहरी रिसर्च का असर आखिरकार स्क्रीन पर दिखता ही है। जल्दबाजी में तैयार किया गया लुक भले आकर्षक लगे, लेकिन लंबे समय में वही डिजाइन टिकता है, जो किरदार की सच्चाई से जुड़ा हो।
आगे क्या उम्मीद
इस फिल्म को इंडस्ट्री में धुरंधर से जोड़कर देखा जा रहा है और ‘रहमान डकैत’ के बदले हुए लुक ने दर्शकों की उत्सुकता बढ़ा दी है। अब देखना होगा कि यह यथार्थवादी अप्रोच पर्दे पर कितना असर छोड़ती है। फिलहाल इतना तय है कि यह लुक किसी समझौते का नहीं, बल्कि सोच-समझकर लिए गए रचनात्मक फैसलों का नतीजा है।