इस समय सभी देश चीन से फैले कोरोना वायरस के कहर से जूझ रहे हैं। वहीं इस बीच खबर है कि चीन के द्वारा अंतरिक्ष में भेजा गया रॉकेट अनियंत्रित होकर पृथ्वी की ओर बढ़ रहा है। वहीं इस बीच इस अनियंत्रित रॉकेट को लेकर विशेषज्ञों ने अहम जानकारी दी है।
जानकारी के अनुसार, चीन ने 29 अप्रैल को अपने स्पेस स्टेशन ‘Heavenly Palace’ के लिए पहले मॉड्यूल को लॉन्च किया था। वहीं इस मॉड्यूल को शक्तिशाली लॉन्ग मार्च 5b रॉकेट (Long March 5b rocket) के जरिए अंतरिक्ष में भेजा गया। अब इस रॉकेट का कोर स्टेज (Core stage) तेजी से धरती की ओर बढ़ रहा है। ये चार मील प्रति सेकेंड की रफ्तार से आगे बढ़ रहा है। इतनी रफ्तार पर दो घंटे में पृथ्वी का चक्कर लगाया जा सकता है। वहीं जब ये पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश करने के दौरान ही ये जलने लगेगा, लेकिन इससे निकलने वाले मलबे का बसावट वाली जगह पर गिरने की आशंका बेहद कम है। विशेषज्ञों ने समाचार एजेंसी एएफपी को शुक्रवार को इसकी जानकारी दी।
रिपोर्ट के अनुसार, चीनी इंजीनियरों इस रॉकेट को ऐसा डिजाइन किया है था कि पृथ्वी की निचली कक्षा में प्रवेश करते ही ग्रेविटी ऐसी वस्तुओं को धरती की ओर खींचने लगती है। वहीं सतह की ओर बढ़ने के दौरान इस तरह की वस्तुएं गर्मी की वजह से जलने लगती हैं। लॉन्ग मार्च इतना बड़ा है कि इसके पूरी तरह जलने की संभावना बेहद ही कम है। इसका वजन 18 टन है।
वहीं वर्तमान में रॉकेट की ऊंचाई को देखते हुए इसके धरती पर प्रवेश करने का अनुमान लगाना बहुत मुश्किल है। ये अभी 150 से 250 किलोमीटर की ऊंचाई पर बना हुआ है। यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी में इंजीनियरिंग और इनोवेशन के प्रमुख निकोलस बोबरिंस्की ने कहा, वातावरण में निचले स्तर के डेनसिटी अधिक खतरनाक हो जाती है। ऐसे में हम कुछ अभी कुछ नहीं कह सकते हैं कि कब क्या होगा। शुक्रवार देर रात यूरोपियन समय के मुताबिक, ये पृथ्वी के वातावरण में रात 9 बजे तक प्रवेश करेगा।
इसी के साथ अभी रॉकेट 41 डिग्री के भूमध्य रेखा के झुकाव पर घूम रहा है। इसका मतलब है कि इसका मलबा 41 डिग्री उत्तर और 41 डिग्री दक्षिण में गिरेगा। इन स्थानों में उष्णकटिबंधीय और जेनोरस बैंड शामिल है। इस बेल्ट में ग्रीस, स्पेन और उत्तरी अफ्रीका शामिल हैं। इसके अलावा अमेरिका और चीन का अधिकतर हिस्सा भी शामिल है। फ्रांस और जर्मनी इससे बाहर हैं। रॉकेट का सबसे संभावित लैंडिंग जोन पानी है क्योंकि पृथ्वी की सतह का लगभग तीन-चौथाई हिस्सा महासागरों द्वारा कवर किया गया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि मलबे का बसावट वाले इलाके पर गिरने की संभावना दस लाख में एक है।